हमारी वेबसाइट पहाड़ी भाषाओं यानि उत्तर भारत की हिन्द-आर्य भाषाओं से सम्बंधित है । पहाड़ी भाषाएँ ये वे भाषाएँ हैं जो भारत के दक्षिणी हिमालय के प्रदेशों (उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर) में और नेपाल में बोली जाती हैं ।  हमारी वेबसाइट में आप हमारी अपनी सामग्री और इसके साथ  दूसरे स्रोतों के लिंक पाएँगे जो पहाड़ी भाषाओं और उत्तर भारत की संस्कृति से सम्बंधित हैं ।

यह साइट मुख्यतः भाषाविदों के लिए है  हालाँकि हम आशा करते हैं कि वह दूसरे वैज्ञानिकों जैसे कि मानवविज्ञानिओं और नृवंशविज्ञानिओं के लिए भी उपयोगी होगी और इसके साथ-साथ हिमालय जानेवाले यात्रियों को भी काम आएगी । यह भी उम्मीद है हमको कि हमारी साइट हिमाचल प्रदेश में रहनेवाले और अन्य हिमाचली भाषाएँ बोलनेवाले लोगों के लिए भी दिलचस्प होगी । ये वही लोग हैं जिन्होंने हमको भारत और हिमाचल की अद्भुत संस्कृति के बारे में अत्यंत जानकारी दी और हमारी परियोजना को प्रेरित किया ।

आज-कल हमारी टीम कुलुई भाषा पर शोध कर रही है । २०१४, २०१६ और २०१७ में शोध यात्राओं के दौरान हमने कुलुई भाषा की सामग्री एकत्र की । हमारी परियोजना प्रगति में है  इसलिए साइट पर मौजूद जानकारी लगातार अद्यतन, पूरक और परिष्कृत की जा रही है। 

हमारी इस परियोजना की शुरुआत साल २०१३ में हुई थी। उस समय से लेकर अब तक कुलुई भाषा पर हमारा शोध कार्य चल रहा है। हमारे द्वारा शोध के लिए कुलुई भाषा को चुनने के दो मुख्य कारण हैं। पहला कारण यह है कि हिमाचली भाषाओं का विस्तृत अध्ययन नहीं हुआ है और कुलुई उन भाषाओं में से एक है। दूसरा कारण यह है कि जिस क्षेत्र में कुलुई बोली जाती है उस क्षेत्र का रूस के साथ घनिष्ठ और दीर्घकालिक संबंध हैं। १९९३ में प्रसिद्ध रूसी चित्रकार स्वेतोस्लाव रोरिक द्वारा स्थापित अंतरराष्ट्रीय रोरीक मेमोरियल ट्रस्ट नग्गर (कुल्लू जिले) में स्थित है। आज-कल यह जगह रूसी-भारतीय सांस्कृतिक सहयोग के केंद्रों में से एक है।